धार्मिक अनुष्ठानों में पत्नी इस कारण बैठती है बाईं ओर
सनातन धर्म में विवाह के समय पत्नी को पति के वाम अंग यानी बाईं ओर बैठने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। धार्मिक अनुष्ठानों में भी इसी परंपरा का पालन किया जाता है। हालांकि, इसे केवल धार्मिक नियम मानना पर्याप्त नहीं होगा, क्योंकि इसके पीछे गहरी वैज्ञानिक और ज्योतिषीय अवधारणाएं भी छिपी हैं। पत्नी को वामंगी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है—बाईं ओर स्थित होने वाली। यही नियम पति-पत्नी के शयन के समय भी लागू होता है, जहां पत्नी को पति के बाईं ओर सोने की सलाह दी जाती है।
ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार, हमारे शरीर में दो प्रमुख नाड़ियां होती हैं—सूर्य नाड़ी और चंद्र नाड़ी। सूर्य नाड़ी, जिसे पिंगला नाड़ी भी कहा जाता है, शरीर के दाहिनी ओर स्थित होती है और यह ऊर्जा, उत्साह, और निर्णय लेने की क्षमता को नियंत्रित करती है। वहीं, चंद्र नाड़ी, जिसे ईड़ा नाड़ी कहते हैं, शरीर के बाईं ओर होती है और यह शीतलता, सौम्यता तथा मानसिक शांति प्रदान करती है।
जब पति-पत्नी एक साथ सोते हैं और पत्नी पति के बाईं ओर होती है, तो यह दोनों की ऊर्जा संतुलित करता है। पति की सूर्य नाड़ी उसकी निर्णय क्षमता और आत्मविश्वास को बढ़ाती है, जबकि पत्नी की चंद्र नाड़ी से शीतलता और मानसिक शांति बनी रहती है। इससे रिश्ते में मधुरता आती है और नकारात्मक ऊर्जा कम होती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, इस स्थिति से पारिवारिक जीवन में सामंजस्य बना रहता है, तनाव कम होता है और आपसी समझ बढ़ती है।
चंद्र नाड़ी की सक्रियता शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी मानी जाती है। यह मन को शांत रखती है, तनाव को कम करती है, पाचन तंत्र को सुधारती है और हृदय की गति को संतुलित रखती है। यदि पति-पत्नी सोने की सही दिशा का पालन नहीं करते हैं, तो ऊर्जा असंतुलित हो सकती है, जिससे अनावश्यक तनाव और मानसिक अस्थिरता उत्पन्न होने की संभावना रहती है।
इस प्रकार, सनातन धर्म में स्थापित यह परंपरा केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। पति-पत्नी के बीच प्रेम, सामंजस्य और सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने के लिए वास्तु और ज्योतिष शास्त्र में सुझाई गई यह सोने की स्थिति अत्यंत लाभकारी मानी गई है।