रूस यूक्रेन युद्ध: जब से रूस और यूक्रेन के बीच वॉर शुरू हुई है, उसका ग्लोबल इकोनॉमी पर काफी गहरा असर देखने को मिला है. साल 2021 के मुकाबले साल 2023 में दुनिया की इकोनॉमी आधी रह गई थी. जिसका सबसे बड़ा कारण कोविड के अलावा रूस यूक्रेन वॉर भी रहा. वास्तव में रूस यूक्रेन वॉर के दौरान पूरी दुनिया को दोतरफा नुकसान झेलना पड़ा. पहला यूक्रेन से होने वाले एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट्स की सप्लाई एक तरह से बंद हो गई. वहीं दूसरी ओर रूस पर लगे प्रतिबंधों की वजह से यूरोप ही नहीं बल्कि ब्रिटेन और दुनिया के बाकी हिस्सों में गैस और तेल की सप्लाई में सेंध लग गई. जिसकी वजह से इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा देखने को मिला.

इन तमाम कार्रवाईयों के बाद भारत या अमेरिका और यूरोप ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया महंगाई की चपेट में आ गई. जिसकी वजह से दुनिया की तमाम बड़ी इकोनॉमीज की ओर महंगाई को कंट्रोल करने के लिए अग्रेसिवली तरीके से ब्याज दरों में इजाफा करना शुरू कर दिया. जिसकी वजह से ग्लोबल इकोनॉमी पर काफी नेगेटिव इंपैक्ट दिखाई दिया. अब जब महंगाई के आंकड़े एक बार फिर से कम हुए हैं. साथ दुनिया के बड़े देशों के सेंट्रल बैंकों की ओर ब्याज दरों में कटौती इकोनॉमी को बूस्ट करने सिलसिला शुरू कर दिया है. उसके बाद फिर से यूक्रेन और रूस के बीच वॉर तीखा हो चला है. वहीं इस वॉर को रुकवाने के लिए डोनाल्ड ट्रंप भी बीच में कूद गए हैं.

जिसके लिए वो यूक्रेन के साथ मिनरल्स डील करना चाहते हैं. इसके लिए शुक्रवार को जेलेंस्की और ट्रंप के बीच बात जरूर हुई, लेकिन बेनतीजा रही. ऐसे में एक बार फिर से शंका बढ़ गई है कि रूस और यूक्रेन के बीच ये वॉर और भी तेज हो सकता है. जिसकी वजह से ग्लोबल इकोनॉमह हैंपर होती हुई दिखाई दे सकती है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर पिछली बार इस वॉर की वजह से ग्लोबल इकोनॉमी को कितना हुआ था और आगे वाले दिनों में कितना और नुकसान होने की संभावना है.

दुनिया में छा गया था महंगाई का दौर

साल 2022 के शुरुआती महीनों में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हो गया था. जोकि पूरी दुनिया के लिए चौंकाने वाली घटना थी. वो इसलिए भी कि दुनिया में रहने वाले इस युद्ध के परिणामों के लिए तैयार नहीं थे. कोविड के दौर से गुजरने के बाद दुनिया के सभी देश और ग्लोबल इकोनॉमी रिवाइवल मोड में चल रही थी. यूक्रेन और रूस दो ऐसे देश हैं जो दुनिया की बड़ी आबादी खाद्य पदार्थ, गैस और तेल सप्लाई करते थे.

यूक्रेन पर हमला होने के बाद दुनिया के एक हिस्से में सप्लाई पूरी तरह से थम गई. वहीं दूसरी ओर अमेरिका समेत नाटो और यूरोपियन यूनियन की ओर से रूस कई तरह के प्रतिबंध भी लगा दिए गए. जिसकी वजह से कच्चे तेल की कीमतें आसमान पर पहुंच गई. मार्च 2022 में कच्चे तेल के दाम 140 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गए थे. जिसकी वजह से दुनिया के तमाम देशों में पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़नी शुरू हुई. यही कारण था कि ग्लोबल महंगाई 7वें आसमान पर पहुंच गई थीं.

आईएमएफ के आंकड़ों के अनुसार साल 2021 में जहां ग्लोबल इंफ्लेशन 4.7 फीसदी के अनुमानित लेवल पर था. जो साल 2022 में बढ़कर 8.6 फीसदी पर पहुंच गया. साल 2023 में थोड़ा असर कम हुआ और 6.1 फीसदी पर देखने को मिला. जबकि साल 2024 में अनुमानित महंगाई 5.4 फीसदी बताई गई. आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक दोनों ही साल 2025 में अनुमानित महंगाई के आंकड़े 4.2 फीसदी के आसपास बता रहे हैं. इसका मतलब है कि ग्लोबल इंफ्लेशन एक बार फिर से साल 2021 के लेवल पर आने को तैयार है.

ब्याज दरों में हुआ इजाफा

महंगाई को कम करने के लिए ग्लोबल इकोनॉमी के तमाम बड़े देशों के सेंट्रेल बैंकों की ओर से करीब एक साल तक ब्याज दरों में अग्रेसिवली इजाफा किया. ताकि डिमांड को कम किया जा सके. अमेरिकी सेंट्रल बैंक ने उस दौरान पॉलिसी रेट में 5 फीसदी से ज्यादा का इजाफा किया था. वहीं दूसरी ओर यूरो​पियन यूनियन बैंक की ओर से भी 4 से 5 फीसदी की बढ़ोतरी की थी. बैंक ऑफ इंग्लैंड और दुनिया के बाकी बैंकों की ओर से ब्याज दरों में इजाफा किया. अगर बात भारत की करें तो आरबीआई की ओर से 2.50 फीसदी का इजाफा किया. उसके बाद भी ब्याज दरों को कई महीनों तक हाई नोट पर होल्ड करके रखा. ताकि महंगाई को कंट्रोल किया जा सके. जिसकी वजह से सिर्फ देशों में ही नहीं बल्कि​ ग्लोबल इंफ्लेशन में भी महंगाई के आंकड़े कम देखने को मिले थे.

ग्लोबल इकोनॉमी पर हुआ था असर

महंगाई को कम करने के लिए दुनिया के तमाम देशों की ओर से इकोनॉमिक ग्रोथ को एक हद तक कंप्रोमाइज किया. जिसकी वजह से ग्लोबल इकोनॉमी के आंकड़े काफी नीचे आने लगे. आंकड़ों पर बात करें तो साल 2021 में आईएमएफ का ग्लोबल इकोनॉमी का अनुमान 6.6 फीसदी था. जो साल 2023 में घटकर 3.3 फीसदी पर आ गया. इसका मतलब है कि ग्लोबल इकोनॉमी महज दो ही सालों में आधी हो गई. साल 2022 में दुनिया की अनुमानित जीडीपी 3.6 फीसदी पर आ गई थी. आईएमएफ के अनुसार साल 2024 अनुमानित जीडीपी 3.2 फीसदी और 2025 में भी 3.2 फीसदी ही रहने के आसार हैं. आंकड़ों से साफ देखने को मिल रहा है कि यूक्रेन रूस वॉर का असर अभी ग्लोबल इकोनॉमी से गायब नहीं हुआ है. वैसे ग्लोबल इकोनॉमी के कम रहने के और भी कारण हैं. लेकिन यूक्रेन और रूस का वॉर काफी समय से ग्लोबल इकोनॉमी को बड़ा नुकसान पहुंचा रहा है.

क्या आगे भी हो सकता है नुकसान?

अमेरिका में ट्रंप की सत्ता आने के बाद रूस और यूक्रेन वॉर को रोकने के प्रयास तेज होते दिखाई दे रहे हैं. इसके लिए अमेरिकी प्रेसीडेंट ट्रंप और यूक्रेनियन प्रमुख जेलेंस्की के बीच 45 मिनट की बैठक भी हुई. अमेरिका ने अब अपने स्टांस में बदलाव किया है. अमेरिका यूक्रेन को मदद करने की एवज में मिनरल्स डील चाहता है. जिस पर शुक्रवार को दोनों के बीच बातचीत हुई. ट्रंप ने जेलेंस्की को काफी खरी खोटी भी सुनाई. ऐसा लगा कि दोनों के बीच डील नहीं हो सकी. अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि अगर रूस और यूक्रेन के बीच वॉर और तीखी और तेज होती है तो ग्लोबल इकोनॉमी पर किस तरह का इंपैक्ट देखने को मिल सकता है.

आईएमएफ के आंकड़ों को देखें तो साल 2025 में दुनिया कीर अनुमानित जीडीपी 3.2 फीसदी रह सकती है. अगर दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति और ज्यादा पैनी होती हुई दिखाई दी तो दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की ओर भी बढ़ सकती है. जैसा कि ट्रंप ने बताया भी कि जेलेंस्की तीसरे विश्व युद्ध की ओर जाने का प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में ग्लोबल इकोनॉमी से स्पलाई चेन एक बार फिर से गायब होती हुई दिखाई देगी. जिसका असर जीडीपी पर देखने को मिलेगा. मुमकिन है कि आंकड़े 3 फीसदी से भी नीचे पहुंच जाएं.