पेड़ नहीं, जीवित देवता हैं ये! जानिए मंदिरों में पेड़ों की पूजा के पीछे छिपे राज, क्या है इसका आध्यात्मिक महत्व?
आपने अक्सर देखा होगा कि जब भी कोई मंदिर जाता है, तो वहां मूर्ति के साथ साथ किसी पेड़ की भी पूजा करता है. कई बार लोग उस पेड़ के पास दीया जलाते हैं, जल चढ़ाते हैं और हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं. यह सब देखकर मन में सवाल उठता है कि आखिर मंदिर में पेड़ की पूजा क्यों होती है? दरअसल, हिंदू परंपरा में पेड़ों को सिर्फ पर्यावरण का हिस्सा नहीं, बल्कि ईश्वर का रूप माना गया है. पुराने समय से ही यह मान्यता रही है कि कुछ खास पेड़ों में ईश्वरीय शक्ति होती है और इन पेड़ों के माध्यम से भगवान से जुड़ा जा सकता है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं
मंदिरों में क्यों होते हैं विशेष पेड़?
मंदिरों में आप कई बार पीपल, बरगद, तुलसी, केला या बिल्व का पेड़ देखेंगे. ये कोई आम पेड़ नहीं होते. हर एक पेड़ के पीछे एक गहरी धार्मिक मान्यता जुड़ी होती है.
1. पीपल का पेड़: इसे भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है. शनिवार या एकादशी को इसके नीचे दीया जलाने से शुभ फल मिलता है.
2. बरगद का पेड़: इसे ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों का प्रतीक माना जाता है. वट सावित्री जैसे व्रत इसी पेड़ की पूजा के साथ जुड़ते हैं.
3. तुलसी का पौधा: यह माता लक्ष्मी का रूप मानी जाती है और भगवान विष्णु को भी बहुत प्रिय है. इसे रोज़ पूजा में शामिल किया जाता है.
4. केले का पेड़: इसे गुरुवार को पूजा जाता है और यह भी भगवान विष्णु से जुड़ा होता है.
5. बिल्व का पेड़: शिव पूजा में इसका विशेष महत्व है. इसकी पत्तियां शिवलिंग पर चढ़ाई जाती हैं.
ग्रहों से संबंध
हिंदू ज्योतिष में यह बताया गया है कि हर पेड़ किसी न किसी ग्रह से जुड़ा होता है. जैसे:
-पीपल – शनि और गुरु ग्रह से जुड़ा होता है.
-तुलसी – शुक्र और चंद्रमा से संबंधित होती है.
-नीम – मंगल और केतु से संबंध रखता है.
इन पेड़ों की पूजा करने से ग्रहों के दोष कम हो सकते हैं और मन को शांति मिलती है.
मानसिक और आत्मिक लाभ
मंदिरों में लगे पेड़ सिर्फ धार्मिक नजरिए से ही नहीं, मानसिक शांति के लिए भी अहम होते हैं. माना जाता है कि इन पेड़ों के पास सकारात्मक ऊर्जा होती है. जब कोई व्यक्ति इन पेड़ों के पास जाता है या पूजा करता है, तो उसे मन की शांति मिलती है, ध्यान लगाने में आसानी होती है और एक विशेष ऊर्जा का अनुभव होता है.