बाबुलनाथ मंदिर का इतिहास और पौराणिक कथा
भारत के बहुत राज्यों में कई शिव मंदिर स्थित है। हिंदू धर्म भगवान भोलेनाथ ऐसे देव हैं जिनके माता-पिता व उत्पत्ति के बारे में आज तक किसी को भी कुछ स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है। माना जाता है यह सदा ही थे, इसलिए इनको अनादि कहा गया है। भगवान शिव की गाथाओं का कोई अंत नहीं है। इसलिए अपने शीर्षक को ध्यान में रखते हुए हम अब आपको उनके एक प्रसिद्ध मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। मारवाड़ी और गुजराती समुदाय के लोगों के लिए यह मंदिर बहुत विशेष है। शिवरात्रि के पर्व पर यहां लाखों की संख्या में भक्त आते हैं और प्रत्येक सोमवार को विशेष पूजा की जाती है।
यह मंदिर भारत के राज्य महाराष्ट्र के मुंबई में स्थित है, जहां भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित की गई है। इस प्राचीन मंदिर को बाबुलनाथ जी के नाम से जाना जाता है। लोगों के मन में इस मंदिर के नाम को लेकर हमेशा से जिज्ञासा बनी रहती है कि आखिर क्यों भगवान शिव के मंदिर का नाम बाबुलनाथ पड़ा। इसके बारे में भी हम आपको बताएंगे और जानेंगे इस प्राचीन मंदिर से संबंधित विशेष जानकारी।
श्री बाबुलनाथ मंदिर का स्थान
भारत के प्राचीन व प्रसिद्ध मंदिरों में से एक यह बाबुलनाथ जी का मंदिर महाराष्ट्र के मुंबई में गिरगांव चौपटी के उत्तर दिशा की तरफ मालाबार हिल्स की पहाड़ी के ऊपर यह बाबुलनाथ का मंदिर स्थित है। यह मंदिर 17.84 किलोमीटर लंबी मीठी नदी के पास स्थित है। नक्शे पर श्री बाबुलनाथ मंदिर की स्थिति 18.9587 डिग्री उत्तर और 72.8086 डिग्री पूर्व है।
कैसे पहुंचा जा सकता है श्री बाबुलनाथ मंदिर
इस स्थान के समीप छत्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा है, इस मंदिर तक पहुंचने के लिए इसका बहुत प्रयोग भक्तों द्वारा किया जाता है। इसलिए आज के समय में यह भारत में दूसरा सबसे व्यस्त हवाई अड्डा छत्रपति शिवाजी महाराज अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। इसके अलावा मुंबई सेंटर्ल व ग्रांट रोड की सहायता से देश के अलग अलग राज्यों से लोग सफर करके इस मंदिर के दर्शनों के लिए आते हैं। रेलवे के बाद नेता जी सुभाष चंद्र बोस सड़क मार्ग की सहायता से श्री बाबुलनाथ मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इस मार्ग को बाबुलनाथ मार्ग भी कहा जाता है।
श्री बाबुलनाथ मंदिर की ऐतिहासिक कथा
ठस मंदिर के इतिहास से संबंधित कई कथाएं प्रचलित है। जिसमें से एक पौराणिक कथा के अनुसार मंदिर की इस मालाबार पहाड़ी पर आज से लगभग 300 वर्ष पूर्व समय में एक बड़ा चरागाह रहता था। पहाड़ी व उसके आस-पास की जमीन का ज्यादातर हिस्सा सुनार पांडुरंग के पास था। इस समृद्ध सुनार के पास कई गायें थी, जिसके लिए पांडुरंग ने एक चारवाहा रखा हुआ था। जिसका नाम बाबुल था। सभी गाय में से कपिला नाम की गाय सभी से ज्यादा दूध देती थी।
पांडुरंग ने एक दिन देखा कि कपिला कुछ दिनों से बिल्कुल भी दूध नहीं दे रही है इसलिए उसने बाबुल से इसका कारण पूछा। तो बाबुल का उत्तर सुनकर सुनार आश्चर्यचकित रह गया। बाबुल ने बताया कपिला का दूध ने देना काफी दिनों से चलता आ रहा है। यह गाय गास चरने के बाद एक विशेष स्थान पर जाकर अपना दूध फेंक आती है। तभी सुनार ने अपने आदमियों से उस स्थान पर खुदाई करने के लिए कहा और खुदाई के बाद वहां से एक काले रंग का स्वयंभू शिवलिंग निकता। तब से लेकर आजतक उस स्थान पर बाबुलनाथ का पूजन किया जाता आ रहा है।