अरपा नदी के घाट पर भू माफियाओं का कब्जा
बिलासपुर । अरपा नदी है तो नदी किनारे पाट होंगे ही पाट हैं और कभी इनमें जंगल भी हुआ करते थे । हम बात कर रहे है, लिंगियाडीह ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले अरपा नदी के पाट की। अरपा के तट पर जंगल गुजरे जमाने की बात हैं। वे लोक की स्मृति और राजस्व विभाग के दस्तावेजों में ही दर्ज हैं। नई पीढ़ी को तो यह भी नहीं मालूम की लिंगियाडीह ग्राम पंचायत क्या है और जंगल किसे कहते हैं। खसरा नंबर 993/1क में छोटे- बड़े झाड़ के जंगल थे, अमरैया थी। मीठे आम के रसदार ,छायादार पेड़ों की अनगिन पंक्तियां थीं । गर्मी की दुपहरी में आम के नीचे लोग आराम करते थे ।बच्चे इन आमों में चढ़कर डंडा-पचरंगा खेलते थे। पर वे दिन अब हवा हुए ।चिंगराजपारा में आज भी अमरैया चौक है। जहां कभी आम के बाग थे ।आम के बगीचे को ही स्थानीय भाषा में अमरैया कहा जाता है। अब आम के पेड़ तो नहीं हैं लेकिन नाम बस बचा रह गया है ।समय बदला , जमीन की कीमत बढ़ी और निगाह पड़ गई भू माफियाओं की। बुरा हो नासपीटे ,मरदूदों का जो उनकी निगाह पड़ी अमरैया पर, जंगल पर। और उनकी कुदृष्टि ने सबसे पहले पेड़ों को भस्म किया और अब वे बची हुई खाली जमीन पर बिल्डिंग तान रहे हैं। न तो जमीन उनकी न आसमान उनका ।लेकिन माफिया जमीन पर कर रहे हैं कब्जा। "सबै भूमि गोपाल की" कहा जाता है परंतु यहां पर सभी भूमि भू माफिया की हो गई है ।भू- माफिया जहां चाहते हैं मिट्टी गिराते हैं, रोलर चलाते हैं और उगा देते हैं एक इमारत ।पेड़ों के उगने में समय लगता है। अंकुर फूटता है, कल्ले निकलते हैं । हरियाली बिखरती है, तितलियां मंडराती हैं, बादल अभिषेक करते हैं नूतन नवांकुर का और मधुमक्खियां,भंवरे गीत गाते हैं। अरपा जल से भरकर उचक- उचक कर उनको देखती है। बरसों यह प्रक्रिया चलती है, तब कहीं एक पौधा तैयार होता है। परंतु इमारत चंद रोज में खड़ी हो जाती है। एक इमारत खड़ी होने में समय नहीं लगता। जब चाहते हैं तब इमारत खड़ी कर देते हैं ।सरकार मिली- जुली है ।नगर पालिक निगम और विधायक आपस में नूरा कुश्ती लड़ रहे हैं। कलेक्टर महोदय के अपने दूसरे काम हैं राजस्व विभाग को इन सब से क्या लेना देना; नतीजा यह कि अरपा के तट पर भू माफिया की भीड़ लगी है और यह लोग धीरे-धीरे कुतर रहे हैं अरपा की हरियाली, जमीन, रेत और शहर के अमन चैन के वातावरण को ।देखना है जनता कब जागकर इन भू माफियाओं से भगाती है। कब इन्हें बाहर का रास्ता दिखाती है। क्योंकि अब पानी सर से ऊपर हो रहा है ।दुष्यंत कुमार कहते हैं:
कैसे- कैसे मंजऱ सामने आने लगे हैं, रोते-रोते लोग गाने लगे हैं।
अब तो बदल दो इस तालाब का पानी, यह कमल के फूल अब कुम्हलाने लगे हैं।