ज्ञान और बुद्धि का आशीष देते हैं प्रभु विश्वकर्मा
आश्विन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को दुनिया के सबसे पहले इंजीनियर और वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा का जन्मदिन मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा जी ने भगवान विश्वकर्मा को इस सृष्टि को सजाने संवारने के लिए उत्पन्न किया। इस दिन भगवान विश्वकर्मा के साथ ही कारखानों में औजारों की पूजा की जाती है। भगवान विश्वकर्मा पवित्र आत्मा में बसते हैं। वह ज्ञान के साथ बुद्धि भी प्रदान करते हैं।
मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही इंद्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, सोने की लंका, जगन्नाथपुरी का निर्माण किया। भगवान विश्वकर्मा वास्तु देव के पुत्र हैं। भगवान विश्वकर्मा महान ऋषि और ब्रह्मज्ञानी हैं। उन्होंने ही देवताओं के घर, नगर और उनके अस्त्र-शस्त्र आदि का निर्माण किया। भगवान विश्वकर्मा ने ही कर्ण का कुंडल, भगवान श्री हरि विष्णु का सुदर्शन चक्र, पुष्पक विमान, भगवान शिव का त्रिशूल, यमराज का कालदंड आदि का निर्माण किया। उन्होंने महर्षि दधिचि की हड्डियों से दिव्यास्त्रों का निर्माण किया। प्रभु विश्वकर्मा का स्वरूप विराट है, इसीलिए उनको विराट विश्वकर्मा भी कहा जाता है। इनकी आराधना से सुख-समृद्धि और धन-धान्य का आगमन होता है। कुछ कथाओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा का जन्म देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन से माना जाता है।
भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिवस पर उनकी प्रतिमा को विराजित कर पूजा की जाती है। कल-पुर्जों को भगवान विश्वकर्मा का प्रतीक मानकर पूजा की जाती है। इस दिन यज्ञ का भी आयोजन किया जाता है। इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान श्री हरि विष्णु का ध्यान करें। इसके बाद एक चौकी पर भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या तस्वीर रखें। अपने दाहिने हाथ में फूल, अक्षत लेकर उनका स्मरण करें और अक्षत को चारों ओर छिड़क दें। फूल को जल में छोड़ दें। हाथ में रक्षासूत्र मौली या कलावा बांधें। भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करने के बाद उनकी विधिवत पूजा अर्चना करें। पूजा के बाद औजारों और यंत्रों को जल, रोली, अक्षत, फूल और मिठाई से पूजें, विधिवत हवन करें।