टीकाकरण कराने वालों में संक्रमण के बाद भी अत्यधिक दुष्प्रभाव नहीं : बीएचयू
नई दिल्ली । काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान ने कोविड वैक्सीनेशन को लेकर देश में अपनी तरह का सबसे पहला अध्ययन किया है। बीएचयू ने इसके दस्तावेजी साक्ष्य भी प्रदान किए हैं। बीएचयू के मुताबिक अध्ययन में पाया गया कि प्रोटोकॉल के अनुसार टीकाकरण कराने वाले व्यक्तियों में संक्रमण के अत्यधिक दुष्प्रभाव नही होते हैं। चिकित्सकों के इस समूह ने अपने अध्ययन को एक मूल शोध पत्र में संकलित किया जो यूरोपीय रेडियोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस पत्र का उच्च प्रभाव कारक 5.3 है। जांचकतार्ओं ने कोविड से संक्रमित व्यक्तियों के उच्च रिजाल्यूशन कंम्यूटेड टोमोग्राफी स्कैन का विश्लेषण किया और लक्षण दिखाते हुए उन्हें तीन समूहों में विभाजित किया। पहला, जिन लोगों का टीकाकरण नहीं हुआ था, दूसरा, जिन्हें आंशिक टीकाकरण प्राप्त हुआ था और तीसरा, जिन्हें प्रोटोकॉल के अनुसार सम्पूर्ण टीकाकरण प्राप्त हुआ था। इस दौरान अस्थायी सीटी गंभीरता स्कोर का विश्लेषण किया गया।
अध्ययन में निम्न प्रमुख बिंदु सामने आए-
जिन रोगियों को टीकाकरण की पूरी दो खुराकें मिली, उनमें आंशिक रूप से टीका लगाए गए रोगियों और गैर-टीकाकरण वाले रोगियों की तुलना में औसत सीटी स्कैन स्कोर काफी कम था। अर्थात् जिन व्यक्तियों का सम्पूर्ण टीकाकरण हुआ उनके फेफड़ों में रोग का लक्षण न के बराबर दिखाई दिया।
बीएचयू स्थित रेडियोडायग्नॉसिस विभाग (एक्स-रे विभाग) में चिकित्सक - प्रो. आशीष वर्मा एवं डॉ. ईशान कुमार के नेतृत्व में, प्रो. रामचन्द्र शुक्ला, डॉ. प्रमोद कुमार सिंह और डॉ. रितु ओझा की टीम ने यह अध्ययन किया है।
बीएचयू के मुताबिक कम उम्र (60 वर्ष से कम) के पूरी तरह से टीकाकरण वाले रोगियों में औसत सीटी स्कोर काफी कम था, जबकि 60 वर्ष से अधिक के रोगियों ने टीकाकरण और गैर-टीकाकरण समूहों के बीच महत्वपूर्ण रूप से भिन्न सीटी स्कोर नहीं दिखाया।
यद्यपि यह एक नमूने के आकार के साथ एक प्रारम्भिक अवलोकन संकलन है, जो केवल लेवल 3 स्तर के कोविड-केयर सेन्टर में रिपोर्ट करने वाले रोगियों पर आधारित है। यह भारत में वैक्सीन की प्रभावकारिता और टीकाकरण कार्यक्रम के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
इस कार्य में वास्तविक रोगियों से उनके नियमित उपचार के दौरान एकत्र की गई जानकारी शामिल हैं। इन अध्ययन के दौरान व्यक्तियों पर न ही कोई बाहरी हस्तक्षेप किया गया और न ही उनके रक्त आदि का नमूनाकरण किया गया।
समूह ने इस बात का भी अत्यधिक ध्यान रखा कि रोगी संबंधी नैतिकता और गोपनीयता का उल्लंघन न हो। इस अध्ययन को इस संस्थान की आचार समिति द्वारा भी अनुमोदित किया गया था।
गौरतलब है कि पूरा विश्व कोविड19 महामारी की ताजा लहर की चपेट में है और जिन लोगों पर संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा होता है उनका तथा सम्पूर्ण आबादी का टीकाकरण कर महामारी से बचाव सुनिश्चित करना दुनिया भर की सरकारों के लिए अभी भी बड़ी चुनौती बना हुआ है।
कोरोना वायरस से होने वाली इस महामारी ने हमारे जीवन को सदा के लिए बदल दिया है। इसे वापस पटरी पर लाने का एक मात्र तरीका व्यापक टीकाकरण ही है। टीकाकरण से लोगों में गंभीर और जटिल बीमारी के लिए एक सामान्य प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न होगी। अगर किसी को संक्रमण होता भी है, तो संक्रमित व्यक्ति को दुष्प्रभाव कम होंगे। परीक्षण के पश्चात कई टीके आमजन को लगाए जा रहे हैं। भारत एवं विश्व के कई देशों में सरकारों द्वारा प्रायोजित टीकाकरण कार्यक्रमों में ये टीके वितरित किए जा रहे हैं।
भारत का टीकाकरण कार्यक्रम विश्व के सबसे सफल टीकाकरण कार्यक्रमों में से एक तो है ही, दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान भी है।