श्राद्ध पक्ष की चतुर्दशी को क्यों कहते हैं घायल चतुर्दशी
पितृपक्ष आरंभ हो चुका है। इस साल पितृपक्ष 10 सितंबर से शुरू हुआ और ये समाप्त 25 सितंबर को होगा।पितृपक्ष यानी श्राद्ध का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष में पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करके उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध न केवल पितरों की मुक्ति के लिए किया जाता है, बल्कि उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है। श्राद्ध पक्ष के दिनों में 24 सितंबर को चतुर्दशी का श्राद्ध किया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चतुर्दशी के श्राद्ध का विशेष महत्व है। इसे चतुर्दशी को घायल चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार चतुर्दशी तिथि पर केवल ऐसे मृतकों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी या तो अकाल मृत्यु हुई हो या फिर चतुर्दशी तिथि के दिन उनका देहांत हुआ हो। जिन लोगों की स्वाभाविक मृत्यु हुई है उन लोगों का श्राद्ध इस दिन वर्जित माना जाता है।
महत्व : श्राद्ध पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर स्वमभाविक मृत्यु वाले लोगों का श्राद्ध नहीं किया जाता है। बल्कि इस दिन उन लोगों के श्राद्ध करने की परंपरा है जिनकी अकाल मृत्यु होती है। जैसे जिन लोगों की मृत्यु किसी दुर्घटना में या किसी हादसे में होती है, या फिर किसी जानवर या सांप के काटने से मरने वालों का श्राद्ध इसी दिन होता है। इसीलिए इस चतुर्दशी को घायल चतुर्दशी कहते हैं।
विधि : आश्विन माह की चतुर्दशी तिथि को स्नानादि से निवृत हो जाएं। इसके बाद श्राद्ध के लिए भोग तैयार करें। चतुर्दशी तिथि को पंचबलि का भोग लगता है। पंचबली में गाय, कुत्ता, कौआ, देवता और चींटियों को भोज कराया जाता है।इसके बाद ब्राह्मण को भोज कराने की परंपरा होती है।चतुर्दशी के श्राद्ध पर अंगुली में दरभा घास की अंगूठी पहनें | इसके उपरांत भगवान विष्णु और यमदेव की उपासना करें।